।।कारस देव मंदिर।।
कारस देव नगर इंदौर म.प्र
कारस देव महाराज को भगवान शंकर ने बनाया था अपना शिष्य, गड़रिया की बिन ब्याई बकरी ने दिया था दूध (कथा)
(दिनेश पाल)
कारस देव जब पांच वर्ष थे तब वे जंगल में अकेले खेल रहे थे। उन्होंने देखा कि एक साधु महाराज समाधी लगाये हुए थे (स्वयं शंकर भगवान)
बालक कारस देव श्रद्धा से उनके पास बैठे रहे ,जब साधु महाराज की समाधी खुली तो साधु महाराज को उन्होंने प्रणाम किया और पूछा बाबा में आपकी क्या सेवा करूँ । साधु महाराज (भगवान शंकर ) ने बालक कारस देव को कमंडल देते हुए कहा कि हे बालक जाओ और इस कमंडल में बिन ब्याई बकरी का दूध लेकर आओ । बालक कारसदेव ने श्रद्धा पूर्वक कमंडल लेकर जंगल में एक बकरी चराने वाले गड़रिया के पास पहुंचे । गड़रिया से बिन ब्याई बकरी का थोडा दूध कमंडल में देने को कहा ,गड़रिया ने बालक कारस देव से कहा कि हे बालक बिन ब्याई बकरी कभी दूध नहीं देती ।जो अभी ब्याई (ब्याना =बच्चा को जन्म देना )ही नहीं है ,वो दूध कैसे देगी। बालक ने कहा मुझे बिन ब्याई बकरी का ही दूध चाहिए । तब गड़रिया ने इशारे से बताते हुए कहा जा बालक वो रही बिन ब्याई बकरी ,अगर तुझे दूध दे दे तो तू निकाल ले । बालक कारस देव ने कमंडल लेकर जैसे ही उस बिन ब्याई बकरी के नीचे रखा । बकरी के थनो (स्तन )से अपने आप दूध की धार बहने लगी ।बालक कारस देव समझ गए ये कोई चमत्कारी साधु महाराज है।
ऐसी मान्यता है कि उस दिन के भगवान शंकर के वरदान के फलस्वरूप 100 में से एकाध बिन ब्याई बकरी भी दूध देती है । जिसे ईन्दल या अलहद बकरी भी कहा जाता है। जब बालक कारस देव दूध लेकर लौटे तो साधु महाराज ने कहा हे आज्ञाकारी बालक तुम्हारा गुरु कौन है ? बालक कारस देव ने बताया हे साधु महाराज अभी मेरा कोई गुरु नहीं ,साधु महाराज ने कहा हे बालक जिसका कोई गुरु नहीं हो उसकी सेवा में ग्रहण नहीं कर सकता ।तब बालक कारस देव ने चतुराई पूर्वक कहा कि ,हे साधु महाराज आप से अच्छा गुरु कौन हो सकता है ,दूध पीने से पहले मुझे शिष्य बना लो और दूध भी पी लो।
भगवान शंकर ने बालक कारस देव को शिष्य बनाकर दूध पिया। भगवान शंकर वही रह कर तपस्या करने लगे और बालक कारस देव उनकी सेवा करते रहे। भगवान शंकर का जब तपस्या का समय पूरा हुआ। कारस देव ने भगवान शंकर से प्रार्थना की ,हे त्रिलोकीनाथ भविष्य में आपके तपस्या स्थान की पहचान बनाने के लिए आप इस सूखे और निर्जन स्थान पर,हिमालय जैसी गंगा न सही प्यास बुझाने बाली गंगा तो बहा दो ,भगवान शंकर तथास्तु कह अंतर्ध्यान हो गए। कारस देव गुरु के स्थान पर शिवलिग स्थापित कर उसकी पूजा करने लगे । आज भी बूढी जहाज गांव को श्रद्धालु पूजनीय स्थान मानते हैं ,बड़ी श्रद्धा के साथ पवित्र कुंड में स्नान करते है।गुरु की तपस्या के स्थान पर पूजा वाला शिवलिग मौजूद है । और पूजा वाले स्थान से ही शीतल गंगा निकलती है ,जिसे शीते कुंड कहा जाता है,जिसका महत्व पुष्कर सरोवर की तरह है। और आज भी मौजूद है ,श्रद्धालु बहुत दूर दूर से आकर इस कुंड में नहाते है। मान्यता है कि इस कुंड स्नान से समस्त पाप नष्ट जाते है ,तथा असाध्य चर्म जहाँ तक कि कोढ़ भी ठीक हो जाता है।
भोटा, तह. महरौनी ललितपुर